Add To collaction

युवराज का चुनाव

"युवराज का चुनाव"
पब्लिकेशन-तुलसी कॉमिक्स
मूल्य-8/- संख्या-834
पेज-32 वर्ष-? 
कहानी-विजय कुमार वत्स,चित्रांकन-जे.बी.
संपादन-प्रमिला जैन

नमस्कार मित्रों,
आज की दुनिया में इंसान पैसे के पीछे बेतहाशा भागा जा रहा है.जिसको भी आप देखोगे वो ज़िन्दगी की दौड़ में सबसे आगे रहने के लिए जी तोड़ संघर्ष कर रहा है.सुबह से शाम तक जॉब कर रहा है.घर में ऑफिस का काम कर रहा है.परिवार का पेट पालने के लिए घर से बाहर मार्केटिंग करने या गाड़ी चलाने जा रहा है.हर कोई ऐसे ही व्यस्त है.ऐसा लगता है जैसे ये सब अपनी ज़िन्दगी से रहते हुए हैँ.बड़े होने का यही नुकसान है.हम अपने भीतर का बच्चा मार देते हैँ.अपने सपनो का गला घोंट देते हैँ.ये दुख़द है.आप जितना आगे बढ़ना है बढ़ो,कितना भी पैसा कमाओ लेकिन अपने बचपन को,अपने शौक को कभी ख़त्म मत होने देना.नहीं तो एक दिन आएगा ज़ब अपनी बचपन की अनमोल यादें खोकर भी हाड मांस का आपका ये शरीर बूढा होकर कमजोर हो जायेगा और ज़िन्दगी की रेस में आप फिर भी पीछे ही खड़े रहोगे.

आज लेकर आया हु "तुलसी कॉमिक्स" की ओर से प्रकशित कॉमिक्स "युवराज का चुनाव" जिसके रिव्यु के लिए मित्र और बड़े भाई Mahesh Kumar जी ने बोला था.ये किस वर्ष आई ये तो मुझे ज्ञात नहीं है लेकिन ये याद है कि बहुत समय पहले एक दोस्त के पास इसको खराब हालत में देखा था.32 पेज की इस कॉमिक्स की कहानी राजा रानी वाली कहानियों पे आधारित है जो "विजयन्त नगर" राज्य के लिए चुने जाने वाले युवराज की योग्यता और बुद्धिमानी की कहानी बताती है.

कहानी शुरू होती है "विजयंत नगर" के राजा "प्रभाकर" से जो अपने दो राजकुमारों "सुधाकर" और "दिवाकर" में से किसी एक को युवराज बनाने को लेकर असमंजस में होते हैँ.एक तरफ जहाँ "दिवाकर" अहंकारी राजकुमार था वही "सुधाकर" शांत प्रवत्ति का नेकदिल राजकुमार था.प्रधानमंत्री और रानी की सलाह के बावजूद आख़िरकार वो "दिवाकर" को युवराज घोषित कर देते हैँ.पहले से अहंकार में डूबा "दिवाकर" युवराज बनने के बाद प्रजा पर और भी जुल्म करने लगता है.एक दिन राजा को पडोसी राज्य के राजा "पुंडीर" के आक्रमण की सूचना मिलती है जिसको जानकर वो दुखी हो जाते हैँ.वजह होती है "पुंडीर" की विशाल सेना जिसके आगे उनकी सेना बहुत कम थी.तब "दिवाकर" अपने जोश और जांबाज़ी के साथ उनका मुक़ाबला करने निकल जाता है और बिना कोई रणनीति बनाये युद्ध में कूद पड़ता है.फिर क्या हुआ?क्या "दिवाकर" अपने साहस से राजा "पुंडीर" को हरा पाया?क्या उसकी सेना "जैना नगर" की विशाल सेना के आगे टिक पायी?क्या राजा "प्रभाकर" का "दिवाकर" को युवराज के रूप में चुने जाने का फैसला सही था?"सुधाकर" का क्या हुआ?क्या वो अपने पिता की मदद कर पाया?ये सब जानने की इच्छा है तो ये कॉमिक्स आपको पढ़नी होगी.

कहानी की बात करें तो औसत है और ऐसी कहानियाँ आपने बाल मैगज़ीन "नंदन" या "चंदामामा" में पढ़ी होंगी.कहानी को और रुचिकर बनाया जा सकता था जो नहीं बन पायी.कहानी लिखी है "विजय" जी ने जो पहले भी तुलसी की काफ़ी कॉमिक्स में नज़र आये हैँ.आर्ट है "जे.बी." का जिनके पुराने ज़माने के बनाये चित्र अच्छे लगते हैँ.कुल मिलाकर कॉमिक्स ठीक ठाक है और अगर खाली बैठे हो तो एक बार पढ़ी जा सकती है.

क्यों पढ़ें-अगर पुरानी राजा रानी की कहानियाँ याद करने का दिल कर रहा हो.
क्यों ना पढ़ें-अगर ध्रुव या परमाणु की कोई साइंस-फिक्शन कॉमिक्स पढ़ रहे हो.
रेटिंग-5.5/10

धन्यवाद
महाकाल की कृपा बनी रहे. 
कानपुर वाला अभिषेक🙏😊j

   10
0 Comments